कैसे रचें एक कॉमिक सीरीज़

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कैसे रचें एक कॉमिक सीरीज़
कॉमिक्स की दुनिया! जिसे मैं कहता हूँ दुनिया का सबसे धीमा पर सबसे असरदार मल्टीमीडिया मनोरंजन का साधन। मल्टीमीडिया इसलिए क्योकि यहाँ कहानी के साथ कला कदमताल करती चलती है। इसमें किरदार गढ़ना मुश्किल और आसान दोनों है। मुश्किल तब जब आप वाकई किरदार, उसका पूरा यूनिवर्स सोचें। आसान इसलिए कहा क्योकि कई हीरो, सहायक किरदार और खलनायक को देख कर लगता है कि बस औपचारिकता के लिए या जल्दबाज़ी में बना दिए। मज़े की बात तो ये कि कुछ “जल्दबाज़ी” के बने किरदार तक सफल हो गए…शायद वो समय ऐसा रहा हो, किस्मत साथ दे गयी या शुरुआती कॉमिक्स के बाद किरदार का दायरा बढ़ाने में मेहनत हुई।
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) – *जॉनर – जॉनर यानी कहानी, सीरीज़ मुख्यतः किस श्रेणी जैसे (हास्य, एक्शन, जासूसी, हॉरर, सामाजिक आदि) में आती है। उदाहरण के लिए जेम्स बांड एक जासूसी किरदार है जिसमे एक्शन की भरमार है। कोशिश होनी चाहिए कि किरदार में एक या दो श्रेणियों की विशेषता हो और कुछ सहायक किरदारों, विलेन, घटनाओं के होने पर थोड़ा बहुत अन्य श्रेणियों का फ्लेवर मिलता रहे। केवल इक्का दुक्का श्रेणियों में बंधी श्रृंखला कई संभावनाएँ खो देती है और बहुआयामी नहीं हो पाती। अगर मुख्य किरदार में संभव ना हो तो यूनिवर्स के अन्य किरदारों में अन्य श्रेणियों के गुण डाले जा सकते हैं।
) – *पृष्ठभूमि (बैकड्रॉप) – श्रृंखला की कहानी का विस्तार कितना होगा, ये उसके बैकड्रॉप पर निर्भर करता है। कहानी का कैनवास मान लीजिये, कोशिश यह की जाती है कि किरदारों के अनुसार एक शहर को बेस बनाया जाए और कभी कभार कुछ एंगल ऐसे हों जो मुख्य किरदार को अपनी कर्मभूमि से बाहर जाने पर विवश कर दें। अगर कहानी एडवेंचर श्रेणी की है तो किरदार घूमंतू, बंजारा सा बनाया जा सकता है। ऐसा भी देखने को मिलता है कि किसी स्थापित सीरीज में एकसारता हटाने के लिए कहानी की आधार जगह बदल दी जाती है।
) – *परत – किरदारों को कहानी के हिसाब से परत दर परत खुलना चाहिए। इसका मतलब है कि उनसे जुड़े करैक्टर ट्रेट (व्यक्तित्व के गुण) एकसाथ पाठको के सामने नहीं आने चाहिए। ऐसा करने पर कहानी में रोचक मोड़ लाने या आगे कोई बदलाव करने में मुश्किल आती है। इन गुणों को परत दर परत खोलने में कॉमिक सीरीज के कई यादगार भाग बन सकते हैं। हाँ, इसका ज़रूर ध्यान रखें जिस गुण (या गुणों) को आधार बनाकर नयी कॉमिक लिखी जा रही है वो प्रति की पृष्ठ संख्या के साथ न्याय करें, ऐसा ना हो की 10 पन्ने लायक बात को 50 पन्ने घसीट दिया गया। कुछ बातें अंतराल के बाद दोहराई जाती हैं क्योकि पाठको को नई स्थिति में कुछ विशेष गुणों को पढ़ना पसंद होता है।
) – *शक्ति और कमज़ोरी – किरदार उड़ सकता है पर सिर्फ 150 सेकण्ड्स के लिए, फिर कई बार युद्ध की स्थिति में वह अलार्म, समय का ध्यान नहीं कर पाता और परकटे पक्षी की तरह ज़मीन पर गिरने लगता है। यहाँ तो मैंने उसकी एक शक्ति और कमज़ोरी जोड़ दी पर ज़रूरी नहीं कि ऐसा ही किया जाए। यह उदाहरण बस इतना बताने के लिए था कि किस तरह अलग-अलग समीकरण बन सकते हैं। किरदार में भावनात्मक कमी, बीमारी, पदार्थ से एलर्जी आदि कमियां हो सकती हैं जो उसे बहुआयामी बनाती रहें। इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि मुख्य किरदारों में शक्तियों की भरमार कर उन्हें बिलकुल अजेय ना बना दिया जाए क्योकि फिर उस हिसाब से विलेन बनाना और पाठक को यह विश्वास दिलाना कि हीरो हार सकता है काफी मुश्किल हो जाता है।
) – *करैक्टर यूनिवर्स के नियम – जिस काल्पनिक लोक में आपकी कहानी चल रही है चाहे वह वास्तविक जीवन के पास हो या उस से बहुत अलग उसका बहुआयामी होना ज़रूरी है। अगर आपकी कॉमिक सीरीज छोटे बच्चों के लिए है तो कुछ आयामों को ही रखें क्योकि इतने साड़ी कड़ियों को जोड़ना एक नन्हे दिमाग के लिए मुश्किल होगा। आयाम या डाइमेंशन शब्द जो मैं बार-बार प्रयोग कर रहा हूँ उसका अर्थ है एक ऐसा खिलौना जो उस से खेलने वाले बच्चे (पाठक) को अलग अलग विशेषताओं और उनसे बने समीकरणों से ऊबने का मौका ना दें। कहानी के कैनवास में कुछ विशेष नियम होने चाहिए। क्या किया जा सकता है, क्या संभव नहीं और क्या संभव तो है पर निषेध है…इस तरह की बातें। उस काल्पनिक जगह पर जो बातें निषेध हैं उनके होने पर बानी स्थितियों को पाठक पढ़ना चाहेंगे।
इसके अलावा दी हुई स्थिति में लक फैक्टर (भाग्य से) बुरे से बुरा और अच्छे से अच्छा क्या हो सकता है यह हमेशा तैयार रखना चाहिए। आपने किसी मरीज़ की  दिल की धड़कनो और बाकी रीडिंग्स की लाइन देखी होगी अस्पताल या फिल्मों में जो हर धड़कन के साथ ऊपर-नीचे जाती है और मरीज़ के मशीन से हटने पर या मर जाने पर वह रेखा एकदम सीधी हो जाती है। एक लेखक के रूप में हमें कहानी की उस रेखा की धड़कनो को चलाये रखना है, सीधी नहीं होने देना है। बातें कई और भी हैं जिन्हे आगे आप सबसे साझा करने की कोशिश रहेगी। अपनी कहानी और गढ़े प्रारूप पर विश्वास रखें और ढर्रे से अलग भी नए प्रयोग करते रहने की कोशिश करें।

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